मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है: परंपराएं, महत्व और उत्सव की विविधताएं

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है: परंपराएं, महत्व और उत्सव की विविधताएं 


मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो हर वर्ष जनवरी माह में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्तरायण होने का प्रतीक है, जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। मकर संक्रांति का धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व है, जो इसे विशेष बनाता है।


मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व


मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके घर जाते हैं, जो मकर राशि के स्वामी हैं। इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है। महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था, क्योंकि इस दिन को मोक्ष प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त, मान्यता है कि इसी दिन गंगा नदी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं, जिससे गंगा स्नान का विशेष महत्व है। 


मकर संक्रांति का सांस्कृतिक महत्व


भारत के विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है:


पंजाब और हरियाणा: यहां इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है, जिसमें अग्नि देव की पूजा की जाती है।


उत्तर प्रदेश और बिहार: यहां इसे 'खिचड़ी' के नाम से जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने की परंपरा है। 


तमिलनाडु: यहां इसे पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है, जो मुख्यतः कृषि से जुड़ा पर्व है।


असम: यहां इसे 'माघ बिहू' या 'भोगाली बिहू' के नाम से मनाया जाता है, जो फसल कटाई का उत्सव है।


गुजरात: यहां इसे उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है, जिसमें पतंग उड़ाने की परंपरा है।



इन विविध परंपराओं के माध्यम से मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता को दर्शाता है। 


मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व


मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिससे सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है। इस खगोलीय घटना के कारण दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं, जिससे मौसम में परिवर्तन होता है। सर्दियों के बाद गर्मी का आगमन होता है, जो कृषि और मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। 


मकर संक्रांति पर खिचड़ी का महत्व


मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और खाने की परंपरा विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है। खिचड़ी दाल, चावल और सब्जियों से मिलकर बनती है, जो संतुलित और पौष्टिक आहार है। सर्दियों में यह शरीर को गर्मी और ऊर्जा प्रदान करती है। इसके साथ तिल और गुड़ का सेवन भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से, इस दिन खिचड़ी का दान करना पुण्यदायी माना जाता है। 


मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथाएं


मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं, जो इस पर्व के महत्व को और बढ़ाती हैं:


भगवान सूर्य और शनिदेव: मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके घर गए थे, जिससे पिता-पुत्र के संबंधों में मधुरता आई। 


भीष्म पितामह: महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपनी इच्छा मृत्यु के वरदान के चलते मकर संक्रांति के दिन देह त्यागा, क्योंकि इस दिन को मोक्ष प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। 


गंगा अवतरण: एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन गंगा नदी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं, जिससे गंगा स्नान का विशेष महत्व है। 



मकर संक्रांति पर दान-पुण्य का महत्व


मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन तिल, गुड़, वस्त्र, अन्न और धन का दान करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता है। विशेषकर गंगा स्नान और तिल दान का महत्व अधिक है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 


मकर संक्रांति का उत्सव और परंपराएं


मकर संक्रांति के अवसर पर विभिन्न राज्यों में विशेष उत्सव और परंपराएं निभाई जाती हैं:


पतंग उत्सव: गुजरात और राजस्थान में इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है, जिसे 'उत्तरायण' कहा जाता है। आकाश में रंग-बिरंगी पतंगों का दृश्य मनमोहक होता है।


मकर संक्रांति भारत के विभिन्न राज्यों में विविध परंपराओं और उत्सवों के साथ मनाई जाती है, जो इस पर्व की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती हैं। आइए, कुछ प्रमुख राज्यों में मनाए जाने वाले इस त्योहार की विशेषताओं पर दृष्टि डालें:


गुजरात: उत्तरायण और पतंग उत्सव


गुजरात में मकर संक्रांति को 'उत्तरायण' के नाम से जाना जाता है। इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है, जिससे आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। लोग सुबह से शाम तक पतंगबाजी का आनंद लेते हैं, और विशेष रूप से इस अवसर के लिए बाजारों में पतंगों की बिक्री होती है। यह परंपरा सामाजिक मेलजोल और उत्साह का प्रतीक है। 


पंजाब और हरियाणा: माघी और लोहड़ी


पंजाब और हरियाणा में मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व 'लोहड़ी' का पर्व मनाया जाता है, जिसमें आग जलाकर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं और नृत्य किया जाता है। इसके अगले दिन 'माघी' मनाई जाती है, जिसमें गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। लोहड़ी और माघी कृषि से जुड़े त्योहार हैं, जो नई फसल की खुशी में मनाए जाते हैं। 


उत्तर प्रदेश और बिहार: खिचड़ी पर्व


उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति को 'खिचड़ी' के नाम से जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाने, खाने और दान करने की परंपरा है। स्नान के बाद तिल, गुड़ और खिचड़ी का दान करना पुण्यदायी माना जाता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर माघ मेले का आयोजन होता है, जो एक माह तक चलता है। 


तमिलनाडु: पोंगल उत्सव


तमिलनाडु में मकर संक्रांति को 'पोंगल' के रूप में मनाया जाता है, जो चार दिनों तक चलने वाला कृषि उत्सव है। पहले दिन 'भोगी' पर पुराने वस्त्र और सामान जलाए जाते हैं, दूसरे दिन 'पोंगल' पर नई फसल से तैयार भोजन सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, तीसरे दिन 'मट्टू पोंगल' पर पशुओं की पूजा होती है, और चौथे दिन 'कानुम पोंगल' पर परिवार और समाज के साथ मेलजोल होता है। 


असम: भोगाली बिहू


असम में मकर संक्रांति को 'भोगाली बिहू' या 'माघ बिहू' के रूप में मनाया जाता है, जो फसल कटाई का उत्सव है। इस अवसर पर पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, और सामूहिक भोज का आयोजन होता है। रात में आग जलाकर नृत्य और गीतों के माध्यम से उत्सव मनाया जाता है, जो सामाजिक एकता और खुशी का प्रतीक है। 


महाराष्ट्र: तिलगुल पर्व


महाराष्ट्र में मकर संक्रांति पर 'तिलगुल' बांटने की परंपरा है। लोग एक-दूसरे को तिल और गुड़ से बने लड्डू देते हुए कहते हैं, "तिलगुल घ्या, गोड़ गोड़ बोला," जिसका अर्थ है तिलगुल लो और मीठा बोलो। यह परंपरा आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ाने का प्रतीक है। 


पश्चिम बंगाल: गंगा सागर मेला


पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति के अवसर पर 'गंगा सागर मेला' का आयोजन होता है, जहां गंगा और सागर के संगम पर श्रद्धालु स्नान करते हैं। यह मेला भारत के सबसे बड़े मेलों में से एक है, जहां देश-विदेश से लोग आकर पुण्य अर्जित करते हैं। 


राजस्थान: मकर संक्रांति उत्सव


राजस्थान में मकर संक्रांति को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन पतंगबाजी का विशेष महत्व है, और जयपुर में 'इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल' का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से लोग भाग लेते हैं। साथ ही, तिल के लड्डू और गजक का सेवन किया जाता है। 


कर्नाटक: संक्रांति हब्बा


कर्नाटक में मकर संक्रांति को 'संक्रांति हब्बा' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं 'एल्लु-बेला' (तिल और गुड़) का मिश्रण बांटती हैं, जो मित्रता और सौहार्द का प्रतीक है। साथ ही, बैलों की पूजा की जाती है और पारंपरिक खेलों का आयोजन होता है। 


मकर संक्रांति का यह सांस्कृतिक वैविध्य भारत की समृद्ध परंपराओं और सामाजिक ताने-बाने को दर्शाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता, प्रेम और भाईचारे को भी प्रोत्साहित करता है।



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